Hindi Poetry : Naya Jagat
हिन्दी कविता : नया जगत
क्यों कोलाहल एवं घरघराहट
और ये कैसी घबराहट,
माना है नया जगत ये
पर कैसी है ये हालत,
शोर कहीं धुओं के बादल
और बनते इटो के जंगल,
तेहस नहस कर चुके जहां को
क्या इस लिए जाते हैं मंगल,
रंग भेद अभी छूटा नहीं
नए खतरे आ गए यहाँ,
क्या हासिल होगा मंगल
नहीं बचा पाय जहां,
बलि दे चुके आदर्शो की
नीति की है किस्हे परवाह,
खून खराबा है आदत अब
जीने की रही किसको चाह,
दिल दहलाने वाली खबरे
मिलती है है सुनने को यहाँ वहाँ
क्या लिये जन्मे थे हम
और बना था ये जहां
- सुरिंदर सिंह
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